हरे कृष्णा।

ओह माई गॉड 2 फिल्म में सेक्स एजुकेशन पर बहुत जोर दिया गया है, जहाँ एक युवक आत्महत्या करने का प्रयास करता है, और फिल्म यह सुझाव देती है कि सेक्स एजुकेशन फैलाने से ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है। यह कहानी बहुत ही दुखद है: एक बच्चा आत्महत्या करने का प्रयास करता है और उसका पिता समाज के खिलाफ जाकर यह सुनिश्चित करने की कोशिश करता है कि ऐसा फिर न हो। यह सच है कि ज्ञान फैलाने से आत्महत्या जैसे मामलों को रोका जा सकता है, लेकिन हमें यह सोचना चाहिए कि क्या केवल सेक्स एजुकेशन इन समस्याओं का हल है?

फिल्म में यह दिखाया गया है कि एक युवक अपने शरीर और यौन प्रदर्शन को लेकर असुरक्षित महसूस करता है। वह अपने प्रजनन अंग का आकार बढ़ाने के लिए दवाइयाँ लेता है, जिससे वह कई बार बेहोश हो जाता है। इसके बाद वह मास्टरबेशन करने की कोशिश करता है, और इसका वीडियो बन जाता है, जिसे उसके साथी वायरल कर देते हैं। इस बदनामी के कारण उसे स्कूल से निलंबित कर दिया जाता है और अंत में वह आत्महत्या करने का प्रयास करता है। उसके बाद उसका पिता यह मुकदमा करता है कि सेक्स एजुकेशन होनी चाहिए ताकि ऐसे मामलों को रोका जा सके।

लेकिन सवाल यह है: क्या सेक्स एजुकेशन से उसकी आत्महत्या रोकी जा सकती थी? भगवद गीता हमें आत्महत्या के कारणों को समझने के लिए गहरे दृष्टिकोण देती है। हमें यह देखना चाहिए कि सेक्स एजुकेशन से वास्तविक समस्या का समाधान कैसे हो सकता है। असल में, यह सिर्फ सेक्स एजुकेशन की कमी नहीं थी, बल्कि इसके पीछे मानसिक असुरक्षा और आत्म-संकोच जैसे गहरे मुद्दे थे।

भगवद गीता में हमें यह सिखाया गया है कि सही कार्य को समझने के लिए हमें बुद्धि की आवश्यकता है। अठारहवें अध्याय के तीसवें श्लोक में यह बताया गया है कि कौन सा कार्य हानिकारक है और कौन सा लाभकारी, यह समझने की बुद्धि हर व्यक्ति को होनी चाहिए। यहां फिल्म में सेक्स एजुकेशन पर ज्यादा जोर दिया गया है, लेकिन यह समझने की जरूरत है कि मानसिक स्वास्थ्य और आत्ममूल्यता से जुड़े मुद्दे भी बहुत महत्वपूर्ण हैं, जिन्हें केवल शारीरिक शिक्षा से नहीं सुलझाया जा सकता।

जहां तक सेक्स एजुकेशन की बात है, यह जरूरी है कि बच्चों को अच्छे और बुरे स्पर्श के बारे में बताया जाए, ताकि वे शारीरिक शोषण से बच सकें। इसके अलावा, जब बच्चे यौन रूप से सक्रिय होते हैं, तो उन्हें इसके स्वास्थ्य पर होने वाले प्रभाव और खतरों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। लेकिन फिल्म में इसे केवल मास्टरबेशन को “नैतिक” और “प्राकृतिक” बताकर समाधान देने की कोशिश की गई है, जो एक अत्यधिक संकीर्ण दृष्टिकोण है।

अगर हम मान भी लें कि मास्टरबेशन नैतिक और प्राकृतिक है, तो क्या यह युवक की आत्महत्या को रोकने में मदद करता? उसकी आत्मा और विवेक उसे परेशान कर रहे थे, जो उसकी मानसिक स्थिति को प्रभावित कर रहे थे। उसे खुद अपनी गलती महसूस हो रही थी, और यही कारण था कि वह आत्महत्या की ओर बढ़ा। जब उसका वीडियो वायरल हुआ और उसे स्कूल से निकाल दिया गया, तो क्या उसकी परेशानी केवल मास्टरबेशन से जुड़ी थी, या वह मानसिक दबाव और असुरक्षा से जूझ रहा था?

इसमें यह सवाल उठता है: सेक्स एजुकेशन से इस युवक की आत्महत्या को कैसे रोका जा सकता था? यदि यह घटना भारत में 25 साल पहले हुई होती, तो क्या उस समय भी मोबाइल और सोशल मीडिया के जरिए वीडियो वायरल हो सकता था? वह समय पूरी तरह से अलग था, और आज के समाज में जो दिखाया गया है, वह बहुत ही अवास्तविक है।

मास्टरबेशन सामान्य है और यह आमतौर पर होता है, लेकिन यदि किसी का वीडियो बनाकर उसे वायरल किया जाए, तो यह उस व्यक्ति के लिए बहुत शर्मनाक हो सकता है। यह बिल्कुल भी सामान्य नहीं है। इसलिए यदि हमें सेक्स एजुकेशन देना है, तो यह केवल मास्टरबेशन पर केंद्रित नहीं होना चाहिए। इसमें शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में भी शिक्षा दी जानी चाहिए।

अंत में, यह कह सकते हैं कि आत्महत्या से बचने के लिए सेक्स एजुकेशन से ज्यादा जरूरी है आत्मिक शिक्षा। जब लोग समझते हैं कि वे आत्मा हैं और उनका आत्ममूल्य शरीर या शारीरिक अंगों से नहीं जुड़ा है, तो वे असुरक्षा और मानसिक संकट से बाहर निकल सकते हैं। भगवद गीता यह सिखाती है कि हम सब अविनाशी आत्मा हैं और शारीरिक रूप से पहचानने की बजाय हमें अपनी आत्मा की पहचान करनी चाहिए।

यदि हमें सच में आत्महत्या को रोकना है, तो यह जरूरी है कि हम व्यक्ति को यह समझाएं कि उसकी पहचान शरीर से नहीं, बल्कि आत्मा से है। यह है असली समाधान, न कि केवल सेक्स एजुकेशन।

यहाँ यह बात उठाई गई है कि कुछ लोग अपनी कल्पनाओं और भौतिक सुखों को वास्तविकता से अधिक महत्व देने लगते हैं, जिसके कारण उनके व्यक्तिगत संबंध और सामाजिक जीवन प्रभावित होते हैं। खासकर पश्चिमी देशों में सेक्स शिक्षा और लिबरल कल्चर के चलते यह समस्या अधिक दिख रही है। कई लोग केवल काल्पनिक जीवन में खो जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप वे वास्तविक जीवन में रिश्ते और संतान उत्पत्ति में संकोच करते हैं।

इसके अलावा, कामसूत्र जैसे ग्रंथों को अक्सर गलत तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। यह पुस्तक वैदिक ग्रंथों में से एक है, लेकिन इसका महत्व बहुत बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता है। भारतीय संस्कृति में अन्य ग्रंथों और विचारों को अधिक महत्व दिया जाता है, जो जीवन के अधिक गहरे और व्यापक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

वेदों में चार पुरुषार्थों का उल्लेख किया गया है – धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष। काम का स्थान तीसरे स्थान पर है, इसका उद्देश्य केवल भोग नहीं है, बल्कि यह जीवन में संतुलन बनाए रखने के लिए है। वैदिक शास्त्रों के अनुसार, जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक सुख नहीं है, बल्कि आत्मा की उन्नति और भगवान के साथ एकता प्राप्त करना है।

भगवान गीता में कहते हैं कि जब काम और भोग धर्म के मार्ग से विचलित हो जाते हैं, तो यह आत्मा के विनाश की ओर ले जाते हैं। समाज में जिस तरह से सेक्स शिक्षा दी जा रही है, उसमें केवल शारीरिक भोग को सामान्य किया जाता है, लेकिन इसके पीछे के आध्यात्मिक उद्देश्य को नज़रअंदाज किया जाता है।

समाज में जो “शेमिंग” या निंदा होती है, वह भी कई बार सकारात्मक प्रभाव डालती है, जैसे कि लोग सार्वजनिक रूप से कुछ अनुचित कार्य करने से बचते हैं। यह शेमिंग गलत कार्यों को रोकने का एक तरीका हो सकता है, लेकिन इसे अत्यधिक नहीं बढ़ाना चाहिए, क्योंकि इसका विपरीत प्रभाव भी हो सकता है।

आध्यात्मिक ज्ञान इस प्रकार के समस्याओं को सुलझाने का सबसे प्रभावी तरीका हो सकता है। सही दिशा में मार्गदर्शन देने के लिए, हमें केवल शारीरिक शिक्षा नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक विकास की भी शिक्षा देनी चाहिए। यह एक व्यक्ति को आत्मज्ञान और सच्ची खुशी की ओर मार्गदर्शित करेगा, जिससे वह अपने जीवन में संतुलन बना सके और किसी भी अनुचित या आत्म-विनाशक प्रवृत्तियों से बच सके।

यह बात महत्वपूर्ण है कि शारीरिक शिक्षा, विशेषकर मस्तुरबेशन और सेक्स को केवल शारीरिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी समझा जाए। जो कुछ भी शास्त्रों में कहा गया है, वह जीवन के उच्चतम उद्देश्य की प्राप्ति के लिए है, और इसमें कोई भी विकृत सोच या भोगवाद नहीं होना चाहिए।

  • कल्पना और वास्तविकता में अंतर:

    • कई लोग मानसिक कल्पनाओं में खो जाते हैं और इसलिए वे शारीरिक संबंध स्थापित नहीं कर पाते।

    • इसके कारण संबंध नहीं बनते, और बच्चे पैदा नहीं होते, खासकर पश्चिमी देशों में।

  • समाज में लिबरल कल्चर का प्रभाव:

    • लिबरल कल्चर और सेक्स शिक्षा ने लोगों को व्यक्तिगत भोग पर ध्यान केंद्रित करने की प्रेरणा दी है।

    • इस कारण लोग वास्तविक जीवन के संबंधों को नकारते हुए काल्पनिक दुनिया में जीते हैं।

  • कामसूत्र और भारतीय संस्कृति:

    • कामसूत्र एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, लेकिन यह सबसे महत्वपूर्ण नहीं है।

    • भारतीय संस्कृति में इसका महत्व कम था, लेकिन ब्रिटिश शासन के दौरान इसे एक अन्य दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया।

  • मंदिरों की वास्तुकला और उद्देश्य:

    • मंदिरों में वास्तुकला का उद्देश्य आध्यात्मिक उन्नति है, न कि भोग की ओर प्रवृत्त करना।

    • भोग और स्वर्ग के आकर्षण से व्यक्ति को ऊपर उठकर आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।

  • काम का स्थान और उद्देश्य:

    • वैदिक शास्त्रों में काम को धर्म, अर्थ, और मोक्ष के साथ रखा गया है।

    • काम का सही उद्देश्य संतान उत्पत्ति और पति-पत्नी के बीच संबंध स्थापित करना है, न कि केवल भोग।

  • आध्यात्मिक दृष्टिकोण से काम:

    • भगवान के अनुसार, काम एक धार्मिक कार्य है जब यह संतान उत्पत्ति के लिए होता है।

    • भोग के लिए किया गया काम, बिना धर्म और उद्देश्य के, विनाशक हो सकता है।

  • धार्मिक और भौतिक जीवन का संतुलन:

    • धर्म और अर्थ के बिना केवल काम और भोग के पीछे भागने से जीवन असंतुलित हो सकता है।

    • भगवद गीता के अनुसार, यह व्यक्ति के जीवन के लिए नुकसानदायक हो सकता है।

  • मास्टरबेशन और इसके परिणाम:

    • मास्टरबेशन से संतान उत्पत्ति नहीं होती और न ही यह किसी प्रकार की बंधन को उत्पन्न करता है।

    • यह केवल भोग के लिए होता है, जो आत्मा की उन्नति में मदद नहीं करता।

  • शारीरिक भोग और समाज की प्रतिक्रिया:

    • समाज में सार्वजनिक रूप से शारीरिक भोग की चर्चा करना या मास्टरबेशन करना शुद्ध रूप से सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है।

    • इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है।

  • आध्यात्मिक शिक्षा का महत्व:

    • आत्महत्या और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को रोकने के लिए आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करना अत्यंत आवश्यक है।

    • सेक्स शिक्षा और भोग के बारे में गलत जानकारी समाज को हानि पहुँचा सकती है।

  • समाज में बदलते दृष्टिकोण:

    • समाज में समय के साथ बदलाव आया है, जैसे कि धूम्रपान पर कम सार्वजनिक स्वीकृति, इसी तरह भोग के विषय में भी जागरूकता बढ़ानी चाहिए।

    • लोग यदि शारीरिक भोग के बारे में समझदार होंगे तो समाज में शांति और संतुलन आएगा।

  • शास्त्रों की वास्तविक शिक्षा:

    • शास्त्रों में काम के बारे में स्थान है, लेकिन इसका उद्देश्य केवल भोग नहीं है।

    • यह एक stepping stone है, और जीवन के उच्च उद्देश्य की ओर बढ़ने के लिए आगे बढ़ना चाहिए।

 हरे कृष्णा।