हरे कृष्णा।

ओपेनहाइमर और भगवद्गीता – एक दृष्टिकोण

ओपेनहाइमर, जिन्हें ‘एटम बम के पिता’ के रूप में जाना जाता है, पर आधारित फिल्म में उनका भगवद्गीता के साथ क्या संबंध है, इस पर चर्चा करेंगे। ओपेनहाइमर और उनके वैज्ञानिक दल ने जो परमाणु बम न्यू मेक्सिको के रेगिस्तान में ट्रिनिटी टेस्ट (Trinity Test) के दौरान विस्फोटित किया था, उसी समय ओपेनहाइमर ने भगवद्गीता का एक महत्वपूर्ण श्लोक उद्धृत किया था।

यह श्लोक भगवद्गीता के ग्यारहवें अध्याय का तैंतीसवां श्लोक है:

“कालोऽस्मि लोकक्षयकृत् प्रवृद्धः”
(भगवद्गीता 11.32)

इसका अर्थ है:

“मैं काल हूं, जो संपूर्ण लोकों का संहार करने के लिए आया हूं।”

चार D’s – ओपेनहाइमर का दृष्टिकोण
इस उद्धरण के माध्यम से ओपेनहाइमर ने चार मुख्य भावनाओं का अनुभव किया, जिन्हें हम चार ‘D’ के रूप में समझ सकते हैं:

  1. Divinity (दैवत्व): परमाणु बम की अपार शक्ति देख कर ओपेनहाइमर ने इसे एक दैवीय शक्ति के रूप में महसूस किया।

  2. Duality (द्वैतता): बम की शक्ति के सामने आकर एक ओर वह आश्चर्यचकित थे, तो दूसरी ओर भय और आतंक का सामना कर रहे थे। यह द्वैतता, जैसे अर्जुन के मन में था, जब वह युद्ध के बारे में सोचता था।

  3. Direction (दिशा): ओपेनहाइमर और उनके वैज्ञानिक दल को यह समझ में नहीं आ रहा था कि इस अत्यधिक शक्ति का सही दिशा में उपयोग कैसे किया जाए। यही द्वंद्व अर्जुन के मन में था—कि युद्ध करना चाहिए या नहीं, क्योंकि युद्ध में विनाश होने वाला था, लेकिन अगर युद्ध न हुआ तो अधिक विनाश हो सकता था।

  4. Destruction (विनाश): ओपेनहाइमर के मन में यह भय और आतंक था कि इतनी भारी शक्ति का विनाशकारी प्रभाव क्या हो सकता है। इसी प्रकार, अर्जुन को भी युद्ध की विनाशकारी स्थिति को समझने में कठिनाई हो रही थी।

ओपेनहाइमर का भगवद्गीता से संबंध
ओपेनहाइमर का जीवन और उनका अध्ययन भी भगवद्गीता के साथ गहरे जुड़े हुए थे। वह पहले हार्वर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहे थे, और तभी उन्होंने अपनी रुचि पूर्वी दर्शन में विकसित की। उनके द्वारा भगवद्गीता के संस्कृत संस्करण को पढ़ने की प्रेरणा भी मिली थी। उन्होंने गीता को अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक ग्रंथ माना और यह पुस्तक उनके दस सबसे प्रभावशाली ग्रंथों में शामिल थी।

ओपेनहाइमर ने दूसरी विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति FDR (Franklin D. Roosevelt) की मृत्यु के बाद उनके मेमोरियल सर्विस में गीता को वितरित किया था, ताकि लोग मृत्यु के बारे में बेहतर समझ सकें।

काल और मृत्यु का विषय
ओपेनहाइमर के मन में जब परमाणु विस्फोट हुआ, तो उसे देखते हुए उन्होंने भगवद्गीता के ग्यारहवें अध्याय के श्लोक को याद किया, जहां भगवान ने अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाया था। इस रूप को देख कर अर्जुन चकित हो गए थे, क्योंकि उन्होंने देखा था कि भगवान का रूप अनंत है, और उसमें से अग्नि निकल रही थी, जिससे सभी योद्धाओं का विनाश हो रहा था। अर्जुन के मन में उस रूप को देखकर भय पैदा हुआ था, और उन्होंने भगवान से पूछा, “आप कौन हैं?” भगवान ने उत्तर दिया:

“कालोऽस्मि लोकक्षयकृत् प्रवृद्धः…”

यह श्लोक ओपेनहाइमर द्वारा उद्धृत किया गया था, जब उन्होंने परमाणु विस्फोट के परिणामस्वरूप उत्पन्न भय और विनाश को महसूस किया। ओपेनहाइमर के अनुसार, यह शक्ति, जो इतनी विनाशकारी है, उसी प्रकार काल है, जो सृष्टि और नाश का कारण होता है।

विनाश और अच्छाई का द्वंद्व
जैसे अर्जुन के मन में युद्ध करने या न करने का द्वंद्व था, वैसे ही ओपेनहाइमर के मन में भी यह द्वंद्व था कि परमाणु बम को बनाना उचित था या नहीं। हालांकि, यदि अमेरिका यह बम नहीं बनाता, तो जर्मनी इसका विकास कर सकता था, और यह मानवता के लिए विनाशकारी हो सकता था। ओपेनहाइमर और उनके जैसे अन्य वैज्ञानिकों के लिए यह कठिन निर्णय था कि यह विनाशकारी शक्ति विकसित की जाए या नहीं।

इसी प्रकार, अर्जुन के मन में यह द्वंद्व था कि अगर वह युद्ध नहीं करेंगे, तो अत्याचारी दुर्योधन के अधीन देश और समाज का विनाश हो सकता है। लेकिन युद्ध करना भी विनाश का कारण था। गीता के माध्यम से भगवान ने अर्जुन को यह समझाया कि जब अच्छे लोगों के पास कोई अच्छे विकल्प नहीं होते, तब उन्हें अपने धर्म का पालन करना चाहिए। यही मार्गदर्शन ओपेनहाइमर और उनके वैज्ञानिकों को भी मिला था।

निष्कर्ष
ओपेनहाइमर ने जो परमाणु बम बनाया, वह एक तरह से काल की शक्ति का प्रतीक बन गया। इस शक्ति का निर्माण करते हुए उन्हें भगवान के विराट रूप का स्मरण हुआ, और वह भगवद्गीता के श्लोक को उद्धृत करके यह समझ पाए कि यह शक्ति एक दैवीय योजना का हिस्सा है।

गीता का यह सन्देश आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि यह हमें यह समझने की प्रेरणा देती है कि जब हमें अच्छे विकल्प नहीं मिलते, तब हमें भगवान की योजना को समझने की कोशिश करनी चाहिए और अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।

हरे कृष्णा!