हरे कृष्णा।

जब अभी भारत ने चैंपियंस ट्रॉफी जीती, तो यद्यपि उसमें हमें बहुत आनंद हो रहा है, साथ ही एक आलोचना भी हो रही है — कि सारे मैच एक ही स्थान पर हुए, जिससे भारत को एक unfair advantage मिला। आज हम इस विषय को भगवद गीता और महाभारत की दृष्टि से तीन पहलुओं — conditions (परिस्थितियाँ), causes (कारण), और choices (चुनाव) — के माध्यम से समझने का प्रयास करेंगे।

1. Conditions (परिस्थितियाँ)

भगवद गीता के अठारहवें अध्याय में भगवान कहते हैं कि अधिष्ठान (स्थान) कर्मफल के पाँच कारणों में एक है। यानि जो जगह होती है, वो भी कर्म का परिणाम तय करने में भूमिका निभाती है।

गीता में भगवान कहते हैं (18.14-15) —
“अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम्। विविधाश्च पृथक् चेष्टा दैवं चैवात्र पञ्चमम्॥”
यह बताता है कि हर कर्म के पीछे पाँच कारण होते हैं, और उनमें से एक “अधिष्ठान” यानी स्थान या परिस्थिति भी है।

तो क्या भारत की परिस्थिति अनुकूल थी?
हाँ, कुछ हद तक — सारे मैच एक ही स्थान पर होने से मौसम की आदत हो गई, यात्रा का थकान नहीं हुआ। लेकिन यह भी देखना होगा कि भारत ने हर मैच एक ही ट्रैक पर नहीं खेला; परिस्थितियाँ बदलती रहीं। और भारत ने लगभग हर बार टॉस भी हारा — जैसे फाइनल और सेमीफाइनल दोनों में। उन परिस्थितियों में टॉस हार कर जीतना आसान नहीं होता, खासकर स्पिन-अनुकूल पिचों पर दूसरी बल्लेबाज़ी करना चुनौतीपूर्ण होता है।

तो परिस्थिति पूरी तरह भारत के पक्ष में नहीं थीं। जैसे गीता में कहा गया है — कभी परिस्थितियाँ अनुकूल होती हैं, कभी प्रतिकूल, कभी मिश्रित। हमें कर्म करना है, परिणाम हमारे नियंत्रण में नहीं है।

महाभारत में भी देखें — पांडवों की सेना छोटी थी, संसाधन कम थे, फिर भी उन्होंने परिस्थितियों से शिकायत नहीं की, बल्कि जो उपलब्ध था, उसमें श्रेष्ठ प्रयास किया। उसी तरह हमें भी यह समझना चाहिए कि परिस्थितियाँ हमेशा पूर्ण रूप से fair या unfair नहीं होतीं।

2. Causes (कारण)

जब कोई परिणाम होता है, तो हमें सतही कारणों से आगे बढ़कर deeper causes पर भी दृष्टि डालनी चाहिए।
गीता में भगवान कहते हैं (15.10) —
“विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुषः।”
जो लोग ज्ञानचक्षु से देखते हैं, वे गहराई से कारणों को समझते हैं।

अब क्या भारत ने यह तय किया कि सारे मैच वहीं होंगे? नहीं। यह निर्णय security concerns की वजह से हुआ — खासकर भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते राजनीतिक तनाव के कारण। भारत ने अतीत में कभी पाकिस्तान पर हमला नहीं किया, लेकिन बार-बार पाकिस्तान से भारत पर आतंकी हमले हुए हैं। भारत के खिलाड़ी अगर पाकिस्तान में खेलते, तो उन पर खतरे की संभावना अधिक होती।

अगर पाकिस्तान सरकार स्वयं कहती है कि आतंकवादी “non-state actors” हैं और उनके नियंत्रण में नहीं हैं, तो फिर किसी हमले की गारंटी कैसे दी जा सकती है?

महाभारत में भी जब विदुर धृतराष्ट्र से कहते हैं कि तुम्हारे पुत्रों का कल्याण अब केवल तभी संभव है जब दुर्योधन को पकड़कर युधिष्ठिर से माफ़ी मंगवाओ, तो धृतराष्ट्र क्रुद्ध हो जाते हैं। वे सच्चाई सुनना नहीं चाहते।
लेकिन विदुर युधिष्ठिर के पास जाते हैं और युधिष्ठिर भी पहले विदुर को दोष देते हैं कि आपने ही हमें जुए में बुलाया। लेकिन अंत में युधिष्ठिर समझते हैं कि विदुर दोषी नहीं हैं, वे केवल एक संदेशवाहक थे।
हमें भी उसी दृष्टि से सोचना चाहिए — गहराई से देखना चाहिए कि असली कारण क्या हैं।

3. Choices (चुनाव)

कुछ लोग कहते हैं — “क्रिकेट और राजनीति को मिलाना नहीं चाहिए।”
सैद्धांतिक रूप से सही है, लेकिन practically कैसे अलग करेंगे? हमें धर्म की संकल्पना को समझना होगा। धर्म का अर्थ है — belonging to a larger unit. जैसे हम सड़क पर चलते हैं, तो हम रोड ट्रांसपोर्ट सिस्टम का हिस्सा बनते हैं। उसका उपयोग करते हैं, तो उसके नियमों को भी मानना चाहिए।

उसी तरह, खिलाड़ी दो स्तर पर belong करते हैं —

  1. वे क्रिकेटर हैं, जो क्रिकेट की सेवा कर रहे हैं।

  2. वे राष्ट्र के नागरिक हैं, जिसकी सुरक्षा और गरिमा का सम्मान करना उनका कर्तव्य है।

महाभारत में अर्जुन को भी दो धर्मों के बीच खींचा जा रहा था —
एक ओर वह एक क्षत्रिय था जिसे धर्म की रक्षा के लिए युद्ध करना था, दूसरी ओर वह कुरुवंश का सदस्य था और अपने ही सगे संबंधियों से लड़ने में संकोच कर रहा था।
भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि इस परिस्थिति में तुम्हारा धर्म है — क्षत्रिय के रूप में धर्म की रक्षा करना।

उसी प्रकार, अगर किसी खिलाड़ी को क्रिकेट खेलना है, तो उस खेल को सम्मान देना चाहिए। लेकिन जब राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न उठता है, तो उस राष्ट्र के निर्णयों का सम्मान करना भी उसका कर्तव्य है।

अगर आयोजक चाहते तो सारे मैच भारत में एक ही स्थान पर न रखकर विभिन्न स्थानों पर कर सकते थे। अगर यह चुनाव बेहतर तरीके से होता, तो शायद आलोचना नहीं होती। लेकिन जो विकल्प चुना गया, वह क्रिकेट खेलना और सुरक्षा मानदंडों का पालन — दोनों के बीच संतुलन को दर्शाता है।

निष्कर्ष:

इसलिए हमें निष्पक्ष दृष्टि से देखना चाहिए:

  • परिस्थिति को केवल unfair कहना समाधान नहीं है।

  • कारणों को गहराई से देखना चाहिए।

  • और फिर जो भी परिस्थिति हो, उसमें सबसे सकारात्मक चुनाव करना चाहिए।

हरे कृष्णा। धन्यवाद।